Autobiography of Bithoor from Saurabh Tewari on Vimeo.
Image Credits: EPCO
So, after the eight-month long exposure to Gandhian ideas it was the time to give back to the forum at EPCO. The programme, Gandhi Prasang (Gandhian Eco-philosophy Seminar), was organised at EPCO Bhopal to present our ideas to the jury and co-learners. I presented our ongoing work on the Ziro Valley through the Gandhian Lens. For a larger dissemination, I chose to present my work in Hindi as जीरो घाटी: गांधी के ‘सपनों के भारत’ की एक जीवंत कार्यशाला. The seminar was followed by the Award ceremony on 2nd October at the iconic Minto Hall in Bhopal. The Keynote was delivered by former Environment minister Shri Jayaram Ramesh, who also distributed the certificates to all the Gandhian Eco-philosophy Fellows. दिल्लीवालों को समर्पित।
यह मेरा शहर! कब आएगा मुझे नज़र? यह मेरा शहर! कब होगा मुझे इस पर फ़क़र? यह धुँध कब छँटेगी, कब आएगा मुझे कुछ नज़र? लगभग दो करोड़ लोगों का घर, ये दिल्ली शहर, अब दर बदर, दर्द भरा मंज़र। हर तरफ़, बस बुरी ख़बर, ना दिखती कोई डगर, हिंदुस्तानी इतिहास का सबसे निराला नगर, आज चिमनी क्यूँ बन गया पर? साँसे है रुक गई, पास है दिखती क़बर, धुआँ धुआँ सा है, इंसान ही का है ये क़हर। गाड़ियाँ अब भी दौड़ रही, स्कूल क्यूँ बंद है मगर? सियासत की रोटी सेकते राजा वज़ीर, पर प्यांदे क्यूँ खाए ज़हर? जब धूप सुहानी आ जाए, उस वक़्त बता देना पहर। यह मेरा शहर! बस आ जाए मुझे नज़र? - सौरभ तिवारी 10 नवम्बर 2017 कैसा है ये कोहराम ?
कभी भी कोई अल्पविराम ! इंसानों से नही है चलती दुनिया , अब आ भी जाओ अल्लाह , आ भी जाओ राम! पत्थर से बन गए है, फूल वादियों के मांग रहे हैं ज़मीन, सबकी जान लेके इस खेल को अब कोई कैसे देखे ? जब अमन हर सुबह, फिर चीखें क्यों हर शाम? इंसानों से नही है चलती दुनिया , अब आ भी जाओ अल्लाह , आ भी जाओ राम! धर्म के नाम पर हैं छलते धर्म के नाम पर करते राज इन्सान ही इन्सान के कत्ल में मसरूफ आज! क्यूँ है यह शोर, क्यूँ मचा है यह कत्लेआम ? इंसानों से नही है चलती दुनिया , अब आ भी जाओ अल्लाह , आ भी जाओ राम! कैसा है ये कोहराम ? कभी भी कोई अल्पविराम ! इंसानों से नही है चलती दुनिया , अब आ भी जाओ अल्लाह , आ भी जाओ राम! न जाने यह धुंआ सा क्यूँ है?
ये अँधेरा सा क्यूँ है? क्यूँ है सन्नाटा हर जगह? है क्या इसकी वजह? कल थे मिले तो चहक रही थी चिड़िया रंग दिखलाती बलखाती तितलिया राग थे बसंत के और छाई बहार थी दश्तो में भी रागिनी बस मल्हार थी फिजा में फूलों की खुशबु मंज़रो में उड़ती पतंगे दरिया में बहते दीये शेर ऐ अमन के ही तो शब्द थे फ़िर ये अब दहशत क्यूँ है? न जाने यह धुंआ सा क्यूँ है? ये अँधेरा सा क्यूँ है? अरे तुम तो बता दो इसकी वजह! |
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October 2023
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