यह मेरा शहर! कब आएगा मुझे नज़र?

दिल्लीवालों को समर्पित।
यह मेरा शहर! कब आएगा मुझे नज़र?
यह मेरा शहर!
कब होगा मुझे इस पर फ़क़र?
यह धुँध कब छँटेगी,
कब आएगा मुझे कुछ नज़र?
लगभग दो करोड़ लोगों का घर,
ये दिल्ली शहर,
अब दर बदर,
दर्द भरा मंज़र।
हर तरफ़, बस बुरी ख़बर,
ना दिखती कोई डगर,
हिंदुस्तानी इतिहास का सबसे निराला नगर,
आज चिमनी क्यूँ बन गया पर?
साँसे है रुक गई,
पास है दिखती क़बर,
धुआँ धुआँ सा है,
इंसान ही का है ये क़हर।
गाड़ियाँ अब भी दौड़ रही,
स्कूल क्यूँ बंद है मगर?
सियासत की रोटी सेकते राजा वज़ीर,
पर प्यांदे क्यूँ खाए ज़हर?
जब धूप सुहानी आ जाए,
उस वक़्त बता देना पहर।
यह मेरा शहर!
बस आ जाए मुझे नज़र?
- सौरभ तिवारी
10 नवम्बर 2017
यह मेरा शहर! कब आएगा मुझे नज़र?
यह मेरा शहर!
कब होगा मुझे इस पर फ़क़र?
यह धुँध कब छँटेगी,
कब आएगा मुझे कुछ नज़र?
लगभग दो करोड़ लोगों का घर,
ये दिल्ली शहर,
अब दर बदर,
दर्द भरा मंज़र।
हर तरफ़, बस बुरी ख़बर,
ना दिखती कोई डगर,
हिंदुस्तानी इतिहास का सबसे निराला नगर,
आज चिमनी क्यूँ बन गया पर?
साँसे है रुक गई,
पास है दिखती क़बर,
धुआँ धुआँ सा है,
इंसान ही का है ये क़हर।
गाड़ियाँ अब भी दौड़ रही,
स्कूल क्यूँ बंद है मगर?
सियासत की रोटी सेकते राजा वज़ीर,
पर प्यांदे क्यूँ खाए ज़हर?
जब धूप सुहानी आ जाए,
उस वक़्त बता देना पहर।
यह मेरा शहर!
बस आ जाए मुझे नज़र?
- सौरभ तिवारी
10 नवम्बर 2017