अनुभूति मेरी
भांति भांति अनुभूति मेरी,
कांति कांति महक रही।
मैं भी एक 'व्यक्ति' हूँ,
ऐसा मुझसे चहक रही॥
है चौराहा या मंझधार यह?
राहें हजारों दिख रही।
किस पथ जाऊं मैं?
दिशाएँ सारी चमक रही॥
इस माया के जाल में,
आँखे सारी मुझे टक रही।
चलना है यहाँ से त्वरित,
यह अवस्था दहक रही॥
भूत भुलाना भयमयी,
भविष्य यात्रा भ्रामक रही?
'अभी' समझना निरंतर
अद्य की वाणी कहक रही॥
भांति भांति अनुभूति मेरी,
कान्ति कान्ति महक रही।
मैं भी एक 'व्यक्ति' हूँ,
ऐसा मुझसे चहक रही॥
कांति कांति महक रही।
मैं भी एक 'व्यक्ति' हूँ,
ऐसा मुझसे चहक रही॥
है चौराहा या मंझधार यह?
राहें हजारों दिख रही।
किस पथ जाऊं मैं?
दिशाएँ सारी चमक रही॥
इस माया के जाल में,
आँखे सारी मुझे टक रही।
चलना है यहाँ से त्वरित,
यह अवस्था दहक रही॥
भूत भुलाना भयमयी,
भविष्य यात्रा भ्रामक रही?
'अभी' समझना निरंतर
अद्य की वाणी कहक रही॥
भांति भांति अनुभूति मेरी,
कान्ति कान्ति महक रही।
मैं भी एक 'व्यक्ति' हूँ,
ऐसा मुझसे चहक रही॥