तुम कब हुए शामिल कारवां में
देखता हूँ तुझे हर ज़मी आसमा में
ढूंढता हूँ तुझे हर गली आशियाँ में हम तो चल रहे थे अकेले तुम कब हुए शामिल कारवां में ? जब इस सफर में तुझ पर पड़ी नज़र दिल के एक कोने में हुई कुछ तो ख़बर अब कब मिलोगे अंखियों को मेरे हर जगह बस तेरा ही मंज़र! एक फूल जाने क्यूँ खिल गया? यादों के कब्रिस्तान में! हम तो चल रहे थे अकेले तुम कब हुए शामिल कारवां में ? दिल की गलियों में चर्चा ये अक्सर दुआओं का भी अब कोई न असर फ़िक्र हो तुझे , थोडी सी भी अगर तो आ जाना सीधे ही इधर... इंतज़ार में बैठा हूँ काटों के बाघबान में हम तो चल रहे थे अकेले तुम कब हुए शामिल कारवां में ? |